panchtantra ki kahaniya

मिथिला नगर में मनसुख नामक एक जुलाहा रहता था. एक दिन काम करते समय उसके औजार टूट गए. इसलिए वह अच्छी लकड़ी लाने के लिए कुल्हाड़ी लेकर घने वन की और चल दिया. वह किसी अच्छे, सूखे और मजबूत वृक्ष को काटकर उसकी लकड़ी से अपने औजार बनवाने की एच्छा लिए इधर-उधर भटक रहा था. अंततः एक शीशम के वृक्ष को उपयुक्त मानकर उस पर कुल्हाड़ी चलाने लगा.

शिशन के उस वृक्ष पर एक यक्ष रहता था. अपने निवास को कटते देखकर यक्ष ने जुलाहे से कहा. ‘ इसे मत काटो, यहां मेरा निवास स्थान है.’

‘ श्रीमन! में एक गरीब और असहाय जुलाहा हूं. धागा बुनते समय मेरे औजार टूट गए हैं. औजारों के बिना में अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ हूं. काफी भटकने और ढूढनें के बाद मुझे यही सूखा वृक्ष मिला है. इसलिए आप मुझे इसे काटने की अनुमति दें वरना मेरा परिवार भूख से व्याकुल होकर मर जाएगा.’ मनसुख जुलाहे ने दीन भाव से कहा.

जुलाहे की वीरता और विनम्रता को देखकर यक्ष द्रवित होते हुए बोला, ‘ मैं तुम्हारी विनम्रता और व्यवहारकुशलता को देखकर काफी पप्रसन्न हुआ हूं. तुम मुझ से कोई वर मांग लो.’

‘ मैं अपनी पत्नी से पूछकर ही उसकी और अपनी इच्छानुसार वर मांगूंगा. एसलिय हे देव! मुझे कुछ पल के लिए घर जाने की अनुमति प्रदान करें.’ जुलाहे ने मन-ही-मन खुश होकर यक्ष से घर जाने की अनुमति मांगी.

‘ ठीक है. अपनी पत्नी से सलाह करके आ जाओ. यक्ष ने कहा.

जुलाहा खुशी-खुशी घर की और चल दिया. रास्ते में उसका परिचित मित्र नाई मिल गया. जुलाहा इतना अधिक खुश और उत्साहित था की अपनी दिल की सारी बातें उस नाई को बता दीं. नाई ने सबकुछ सुनने के बाद जुलाहे से कहा, ‘तुम उस यक्ष से राज-पाट मांग लो. राजा बनकर तुम्हारा शेष जीवन सुख से कटेगा. तुम्हारे पास काफी धन होगा, जिससे दान-पुण्य करके तुम अपना परलोक भी सुधार लोगे.’

‘ तुम ठीक कहते हो, लेकिन घर जाकर अपनी पत्नी इच्छा भी पूछ लूं.’’ जुलाहे ने कहा.

‘ मित्र! ऐसी गलती भूलकर भी मत करना. यह ठीक है की स्त्री घेर की स्वामिनी और लक्ष्मी होती है. अपनी स्त्री को वस्त्र एवं आभूषण आदि अवश्य देने चाहिए लेकिन उसके साथ ऐसे गूढ़ विषयों पर मन्त्रणा नहीं करनी चाहिए.’ नाई ने जुलाहे को अपने मत से अवगत कराते हुए कहा.

’तुम्हारे वचन सत्य हैं, लेकिन मैं अपनी पत्नी से पूछे बगैर कोई काम नहीं करता. इसलिए मैं उससे उसकी इच्छा अवश्य पूंछूगा.’ यह कहकर जुलाहा अपने घर चला गया.

घर आकर उसने सारी घटना अपनी पत्नी को सुनाई. यहां तक कि नाई के वचन भी उसे सुना दिए. इस पर जुलाहे की पत्नी ने कहा, ‘किसी राज्य को पाकर उस पर शासन करना काफी कष्टकारी होया है. राजा बनने के कारण ही राम को वन में भटकना पड़ा, कौरवों और पांडवों में युद्ध हुआ, राजा नल को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा. यदुवंशियों का विनाश हुआ और राज्य पाने के लिए ही विभीषण को अपने भाई रावण से अलग होना पड़ा. जिस राज्य को पाने के लिए भाई-भाई का दुश्मन हो जाता है, बेटा बाप का वध करने के लिए तैयार हो जाता है, ऐसे राज्य को पाने से क्या लाभ? उसे तो दूर से ही प्रणाम करना चाहिए.’

‘ प्रिये! तुम ठीक कहती हो. राज्य पाना तो काफी कष्टकारी है, परंतु यह तो बताओ कि मैं यक्ष से कोन-सा वर मांगू?’ जुलाहे ने पत्नी के वचनीं से सहमत होकर पूछा.

‘ तुम यक्ष से दो अतिरिक्त हाथ तथा एक अतिरिक्त सिर मांग लो. इसमे तुम दुगने वस्त्र बुन सकोगे तथा तुम्हारी आय भी दुगनी हो जायगी और हम थोड़े ही दिनों में समृध्द हो जाएंग.’ पत्नी के यह वचन सुनकर मूर्ख जुलाहा खुशु-खुशी यक्ष के पास चल दिया.

अपनी स्त्री के कहेंनुसार जुलाहे ने यक्ष के पास पहुंचकर उससे कहा, ‘महाराज! मुझे ऐसा वरदान दीजिए, जिससे मेरे चार हाथ और दो सिर हो जाएं.’’

‘ तथा अस्तु!’ यक्ष ने जुलाहे को वरदान देते हुए कहा.

यक्ष के मुख से यह शब्द निकलते ही जुलाहा चार हाथ और दो सिरवाला हो गया. ऐसी स्थिति में जब वह अपने गावं लौटा तो लोगों ने उसे राक्षस समझकर गावं में नहीं घुसने दिया और लाठियों से पिट-पीटकर मार डाला.

कथा-सार

बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है, जो स्वयं की बुद्धि से काम लेता है. अनेक लोगो से विचार-विमर्श करने के बाद व्यक्ति भ्रमित हो जाता है और कोई भी निर्णय स्वविवेक से नहीं ले पाता. जुलाहे को यक्ष ने मनचाहा वर मांगने को कहा तो भी वह मूर्खता भरी मांग कर बैठा और मारा गया. बुद्धिमान मित्र का परामर्श भी उसने नहीं माना और अपनी पत्नी की बुद्धि से जो विचार उपजे, उन पर अमल किया. यदि वह अपनी बुद्धि से तत्काल यक्ष से वर मांग लेता तो उसका यह हश्र न होता.

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