
चार्ल्स रोबर्ट डार्विन
जन्म: 1809 | मृत्यु: 1882
बाईस वर्ष की आयु में ‘बीगल’ नामक जहाज में 27 दिसम्बर, 1831 को अपनी प्रथम महान समुद्र यात्रा प्रारम्भ कर प्रकृतिशास्त्री चार्ल्स रोबर्ट डार्विन ने मानव जीवन के विकास के मूल-तत्वों की खोज करनी करनी प्रारम्भ की थी। वे द्वीपोंमें जाते, नक़्शे बनाते एवं वहां की वस्तुओं का गौर से अध्धयन करते थे। द. अमेरिका में पहुंचकर उन्होंने वहां के जीवो की तुलना यूरोपियनों से की। डार्विन ने लुप्त जीवों के अवशेषो को एकत्रित करके मनुष्य के विकास का क्रम ज्ञात करने की चेष्टा की। जीव का विकास कैसे हुआ?- यह बात सबसे पहले वैज्ञानिक ढंग से चार्ल्स डार्विन ने ही स्पष्ट की। उन्होंने ही सर्वप्रथम यह क्रांतिकारी स्थापना की कि मनुष्य का विकास वनमानुष (एक प्रकार का बन्दर) से हुआ है।
1859 में उनकी विश्वविख्यात कृति ‘दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज बाइ नेचुरल सिलेक्शन’ (The Origin of Species by Natural Selection) प्रकशित हुई, जिसने प्राणियों के शारीरिक विकास क्रम पर प्रकाश डाला और स्पष्ट किया कि कैसे प्राणियों की आकृति भी युग-युग में बदलती परिस्थितियों के साथ परिवर्तित होती जाती है। चार्ल्स डार्विन 8 अक्तूबर 1836 में वापिस इंग्लैंड लौटे। बारह वर्ष बाद डार्विन की दूसरी पुस्तक ‘डिसेंट ऑफ़ मैन’ (Decent of Man) प्रकाशित हुई जिसमे उन्होंने यह क्रन्तिकारी स्थापना की थी कि अन्य प्राणियों की भांति मानव का क्रमिक विकास भी अतिप्राचीन जीवधारियो से हुआ है। इसी को उनका ‘विकासवाद’ का सिद्दांत कहा जाता है। उन्होंने 9 पुस्तके लिखी थी।
चार्ल्स रोबर्ट डार्विन का जन्म इंग्लैंड के एक उच्च परिवार मैं हुआ था। उनके पिता रोबर्ट डार्विन डॉक्टर थे। चार्ल्स की शिक्षा-दीक्षा त्रियुसबरी एडिनबर्ग तथा कैंब्रिज में हुई थी। बचपन में ही उनका ध्यान जीवो एवं वनस्पतियों की रंग-बिरंगी दुनिया में अधिक लगता था। डार्विन के पिता उन्हें भी डॉक्टर बनाना चाहते थे पर उनकी रूचि प्राणिशास्त्र में थी। बचपन में ही उन्होंने अपने घर में एक प्रयोगशाला बना ली थी, जिसमे उन्होंने अपनी रूचि की चीजो को संजोया था। बड़े होकर वे एक विख्यात प्रक्रुतिशास्त्री बने। अपने अनुभवो की सराहना-आलोचना के दौर से गुजरते हुये 73 वर्ष की आयु में 19 अप्रैल, 1882 को उन्होंने शारीर त्याग दिया।