ब्रह्मपुर नगर के निवासी एक ब्राह्मण की पत्नी इतनी अधिक झगड़ालू थी कि प्रतिदिन उसके कारण ब्राह्मण को अपने बंधु-बान्धवों से भला-बुरा सुनना पड़ता था. यहां तक कि उस नगर में ब्राह्मण से कोई बोलना तक पसंद नहीं करता था. अपने जीवन को इस प्रकार उपेक्षित और अपमानित होता देखकर ब्राह्मण ने अपने पैतृक नगर को छोड़ने तथा अन्य स्थान पर जाकर बसने का निश्चय कर लिया.
ब्राह्मणी को लेकर ब्राह्मण घर से निकला और दिनभर यात्रा करने के बाद पत्नी को एक सुरक्षित स्थान पर बैठाकर भोजन कि व्यवस्था के लिए पास के गांव को चल दिया. ब्राह्मण ने लौटकर अपनी पत्नी को मृत अवस्था में पाया. वह उसके शोक में विलाप करने लगा.
तभी उसे आकाशवाणी सुनाई दी-‘ है ब्राह्मण! यदि तू अपनी शेष आयु का आधा भाग अपनी पत्नी को देने का वचन दे तो वह पूनः जीवित हो जायगी.’
ब्राह्मण अपनी पत्नी को बहुत चाहता था, इसलिए उसने तत्काल संकल्प किया और ब्राह्मणी पुनः जीवित हो उठी. ब्राह्मण ने इस घटना को रहस्य ही रखा पर अपनी पत्नी को इस विषय में कुछ भी नहीं बताया. खा-पीकर दोनों निशिचन्तता से सो गए.
अगले दिन आगे का रास्ता पार करने पर ब्राह्मण शाम को अपनी पत्नी को एक सुरक्षित स्थान पर बैठाकर भोजन की व्यवस्था के लिए चल दिया. ब्राह्मण के जाने पर ब्राह्मणी एक सुन्दर लंगड़े युवक को कुएं के पास बैठकर गाते-बजाते देखा तो वह उस पर मोहित हो उठी. ब्राह्मणी युवक के पास जाकर उससे प्रणय याचना करने लगी. पहले तो वह युवक इनकार करता रहा, लेकिन ब्राह्मणी द्वारा लगातार की जानेवाली अनुनय-विनय और मान-मुनहार को देखकर उसका दिल पसीज गया और उसने ब्राह्मणी की बात मान ली. उसने उस लंगड़े युवक को ही पाना पति बनाने का निश्चय कर लिया और युवक को शपथ देकर वहीँ रोक लिया.
ब्राह्मण के लौटने पर जब ब्राह्मणी पति के साथ खाना खाने बैठी तो उसने पति से लंगड़े युवक को भी भोजन देने का अनुरोध किया. ब्राह्मण ने दयावश लंगड़े युवक को भी भोजन दे दिया. ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से जब उस लंगड़े युवक को भी साथ ले चलने का प्रस्ताव रखा तो ब्राह्मण ने कह-‘ अपना सामान तो उठ नहीं पाता, इस लंगड़े को कौन उठेगा.’
‘ इसे मैं सन्दुक में बन्द करके अपने सिर पर उठाकर ले चलूंगी. देखो, इन्कार न करना’ ब्राह्मणी पति से मनुहार करने लगी. इस पर ब्राह्मण ने अपनी धूर्त पत्नी का कहना मां लिया.
अगली सुबह दोनों पति-पत्नी अगले गावं की ओर चल दिए. ब्राह्मणी ने उस लंगड़े युवक को भी संदुकची में बन्द करके उसे सिर पर यथा लिया और ब्राह्मण के साथ चल दी.चलते-चलते शाम होने पर ब्राह्मणी संदुकची नीचे उतारकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई और पति को पास के ही एक कुएं से पानी लेने भेज दिया.
ब्राह्मण अभी कुएं से पानी खिंच ही रहा था कि उसकी पत्नी ने ब्राह्मण को पीछे से आकर कुएं में धकेल दिया और सन्दूकची उठाकर आगे चल दी.
नगर की सीमा में पहुंचते हिः नगर रक्षकों ने सन्दूकची को अपने कब्जे में ले लिया और ब्राह्मणी को दण्डाधिकारी के पास ले चले. दण्डाधिकारी के सम्मुख सन्दूकची खोलने पर उसमें से एक लंगड़ा युवक निकला. ब्राह्मणी ने रोते-बिलखते हुए कहा-‘ साहब! यह मेरा पति है. हमारी जाति के लोग इसके प्राणों के शत्रु बने हुए हैं. इसलिए मैं उसकी जान को बचाने के लिए दर-दर भटक रही हूं.’
दण्डाधिकारी ने ब्राह्मणी के वचनों को सत्य मानकर उसे अभयदान देते हुए कहा-‘ इस नगर में तुम्हारे पति की शुरक्षा का दायित्व हम लेते हैं. इसका पति और सन्दूकची इसे वापस दे दी जाए.’ दण्डाधिकारी ने आदेश दिया.
इसी बीच किसी प्रकार दैवी सहायता से कुएं से बाहर निकलकर ब्राह्मण भी वहां आ पंहुचा. पति को देखते ही ब्राह्मणी चिल्लाकर कहने लगी-‘ मेरे पति का शत्रु यहां भी आ पंहुचा, महाराज. मुझे इससे बचा लीजिय.’
‘ महाराज! यह मेरी पत्नी है.’ ब्राह्मण याचना भरे स्वर में कहा.
‘ नहीं महाराज! यह मेरा पति नहीं बल्कि मेरे सुहाग का शत्रु है.’
ब्राह्मणी के यह वचन सुनकर ब्राह्मण मन-ही-मन बहुत दुखी हुआ और मायूस स्वर में कहा-‘ महाराज! यदि यह मेरी पत्नी नहिं है तो इसने मुझसे जो वस्तु ली है, वह मुझे लोटा दे. मैं इसे छोडकर चला जाऊंगा.’
‘ मैंने तुमसे कुछ नहीं लिया, जो लिया हो भगवान करे तुम्हे वापस मिल जाए.’ ब्राह्मणी के वह कहते ही ब्राह्मण द्वारा उसे दी गई आधी आयु पुनः ब्राह्मण के पास आ गई और ब्राह्मणी उसी क्षण परलोक सिधार गई. वह सब देखकर उपस्थित दण्डाधिकारी, आरक्षीयों और लंगड़े युवक ने आश्चर्य से इस रहस्य के विषय में ब्राह्मण से पूछा तो उसने सारा वृतांत सुनाते हुए कहा-‘ मूर्ख स्त्री पर विश्वास करने से बड़ी मूर्खता कोई और हो ही नहिं सकती.’
कथा-सार
धूर्त लोंगों का कोई दिन-ईमान नहीं होता. उनका तो काम ही दूसरों को धोखा देना या छल-कपट करना होथा है. इसे लोंगों पर रतीभर विश्वाश नहिं करना चाहिए. बेचारे ब्राह्मण ने अपनी आधी आयु देखकर अपनी पत्नी को जीवित किया, परन्तु वहीं पत्नी ब्राह्मण के प्रति निष्ठा न रख सकी. ऐसे कपटी लोंगों से शीघ्रातिशीघ्र छुटकारा पा लेना ही एक मात्र उपाय है.