जन्म:1956
भारतीय क्रिकेट टीम को सन 1983 में एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट श्रृंखला में विश्वविजेता बनाने का श्रेय कपिलदेव को है। विश्वकप में उनके द्वारा बनाये गये 175 रनों की ऐतिहासिक पारी क्रिकेट जगत के स्वर्णित अक्षरों में अंकित हो गयी है।
कपिलदेव ने 20 वर्ष की उम्र में 1000 रन बनाने तथा 100 विकेट लेने का नया कीर्तिमान स्थापित किया। यह कीर्तिमान केवल एक साल और 109 दिनों में ही बना। 6 जनवरी, 1959 को हरियाणा में जन्मे कपिलदेव ने सन् 1975 में प्रथम श्रेणी के क्रिकेट में प्रवेश किया। उन्होंने सन् 1978 में, पाकिस्तान में प्रथम टेस्ट खेला। सचिन तेंदुलकर से पहले कपिल ही ऐसे सबसे छोटी उम्र के बल्लेबाज थे जिन्होंने 1979 में, दिल्ली में, वेस्ट इंडीज के विरूद्ध खेलते हुए 126 रन बनाये और नॉट-आउट रहे।
भारतीय क्रिकेट टीम में मध्यम तीव्र गति के गेंदबाजों की कमी को कपिलदेव ने काफी हद तक दूर किया। उन्होंने अपनी प्रभावशाली मध्यम गति की तेज गेंदबाजी और बल्लेबाजी से जिन बुलंदियों को छुआ वह प्रसंशा के योग्य हे।
30 जनवरी, 1994 को बंगलौर टेस्ट में श्रीलंका के विरुद्ध खेलते हुए कपिलदेव 431 विकेटें लेकर न्यूजीलैंड के सर रिचर्ड हैडली की बराबरी पर आ खड़े हुए। “तुम्हारी योग्यता और अलौकिक संकल्प शक्ति का पुरस्कार है यह,” ये शब्द लिखे थे कपिल की उपलब्धि पर, बधाई सन्देश में, सर रिचर्ड हैडली ने।
कपिलदेव ने ‘बाई गोड्स डिक्री’ इस नाम से अपनी आत्मकथा लिखी। विश्व में जाने-माने आल राउंडर के क्रिकेट जीवन की शुरुआत उस समय हुई, जब 16 सेक्टर की टीम में एक खिलाडी कम हो गया था। किसी को क्या पता था कि खानापूर्ति के लिए जिसे टीम में लिया जा रहा है, वह कपिलदेव क्रिकेट के विश्वमंच पर एक दिन सबसे कम समय में 100 विकटें लेने वाला खिलाडी ही नहीं बनेगा, बल्कि चमत्कारिक रूप से 129 टेस्ट मैचों में 5226 रन और 431 विकटें लेने जैसी उपलब्धियां हासिल करने वाला पहला भारतीय आल-राउंडर होगा।