panchtantra ki kahaniya

कान्तिनगर के राजा देव्शाक्ति  के शासन में प्रजा खुशहाल और सम्पम्न थी। लकिन राजा काफी दुखी था क्योंकि उसके नन्हे और मासूम बेटे के पेट में न जाने एक शांप का बच्चा चला गया था। उस शापं के बच्चे को निकालने के लिए राजा ने बहुत से वैधों और चिकित्सकों से उपचार कराया लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी।

राजा देवशक्ति का बेटा जेसे-जेसे बड़ा होता गया, वैसे-वैसे उसके पेट में शांप की उपस्थिति उसे और अधिक व्याकुल करने लगी। राजा का बेटा अब काफी समझदार भी हो गया था।वह अपने माता-पिता के दुख का कारण भली-भांति समझने लगा था। वह जानता था कि उसके माता-पिता उसको लेकर दुखि और व्याकुल हें।वह इस बात को भी अच्छी तरह जान गया था कि उसके पेट में से सांप का निकलना असम्भव है।

राजा के बेटे से अब अपने माता-पिता का दुख सहन नहीं होता था, इसलिए उसने सोचा की जब तक वह उनकी आंखों के सामने रहेगा वे दुखी ही रहेंगे। यह सब विचार करने के बाद उसने मन-ही-मन एक निश्चय किया, इस राजमहल से कहीं दूर चले जाने का।

एक दिन मौका पाकर राजकुमार ने राजमहल छोड़ दिया और रातो-रात किसी दुसरे देश में चला गया। वहां एक मंदिर के बहार अपना ठिकाना बनाकर रहने लगा और भीख मांगकर अपना पेट पालने लगा। राजकुमार अपने जीवन को धरती पर बोझ समझने लगा। धीरे-धीरे दिन गुजरने लगे और इन गुजरते दिनों में उसके अंदर वैराग्य उत्पन्न हो गया। अब वह भगवान की पूजा-अर्चना में ही लीन रहता।

राजकुमार ने जिसं देश में अपना डेरा डाला था, उस देश के राजा की फुल समान दो सुंदर कन्याएं थीं। लकिन उन दोनों कन्याओं का स्वभाव अलग-अलग था। बड़ी लड़की यह मानती थी कि वह अपने पिता की कृपा से सुख भोग रही है। स्वयं राजा का भी यह मानना कि उसकी पुत्रियां ही नहीं बल्कि पूरी प्रजा उसी की कृपा की मोहताज है। राजा अपनीं बड़ी बेटी से काफी प्रसन्न रहता था क्योकिं वह अपने मुंह से कही बार इस बात को दोहरा चुकी थी कि वह अपने पिता की सम्पन्नता के कारण ही खुश भोग रही है। बड़ी बेटी के इस व्यवहार को देखकर राजा ने उसका विवाह एक राजकुमार के साथ कर दिया।

राजा की छोटी बेटी कामिनी व्यवहार और उसकी सोच बड़ी बहन से काफी भिन्न थी। उसके व्यवहार से राजा प्रसन्न रहा करता था,क्योकिं वह सोचती थी कि वह अपने पिता की कृपा से सुख भोग नहीं कर रही बल्कि उसका भाग्य इसका कारण है। कामिनी के इस व्यवहार से राजा काफी रुष्ट था और अपनी ऐसी पुत्री को दण्डित करने की मंशा उसने एक दिन अपने सेवक से कहा-‘में अपनी छोटी पुत्री कामिनी को दण्डित करना चाहता हूं, इसलिए उसकी शादी नगर के बाहर झोंपडे मे। रहनेवाला भिक्षुक से कर दी जाए।

‘लकिन महाराजा यह तो राजकुमारीजी के साथ अन्याय होगा। द्रसथ्ता के लिए क्षमा करे! में आपसे इश्का कारण जानना चाहता हूं स्वामी।’ सेवक ने आश्चर्य भरे स्वर में पूछा।

‘तुम किसकी कृपा से राजसुख भोग रहे हो? राजा ने सेवक से प्रशन किया।

‘आपकी कृपा से महाराजा!’ सेवक ने कहा।

‘लेकिन हमारी बेटी इसे मानने को तैयार नहीं हें। उसका मानना है कि वह अपने भाग्य की कृपा से सुख भोग रही है।’ राजा ने क्रोधित स्वर में कहा।

सेवक राजा के इस सोतेले व्यव्हार से खुश नहीं हुआ’ लेकिन राजा के सामने मुंह खोलने और उसकी आज्ञा का पालन न करने का दण्ड भी जानता था।कि राजा काफी घमण्डी प्रवर्ती का है। जब की पुत्री कामिनी ठीक ही कहती है, कोई किसी के भाग्य सुख नहीं भोग सकता। धरती पर जो कोई भी सुख भोग रहा है वह अपने-अपने भाग्य और परिश्रम के कारण। भगवान के सिवा कोई किसी का अन्नदाता नहीं हो सकता।

सेवक यही सब सोचते-सोचते मंदिर के निकट बने भिक्षुक के झोंपडे के बाहर आकर ठहर गया। भिक्षुक बना राजकुमार अपने झोंपडे के बहार खड़े राजपुरुष को देखकर आश्चर्यचकित रह गया।

‘महाराज ने तुम्हें बुलाया है।’सावक ने भिक्षुरुपी राजकुमार से कहा।

‘लेकिन मेरा दोष क्या है, भिक्षुक ने भयभीत स्वर में पूछा।

‘दोष तुम्हारा नहिं राजकुमारी का है, वह राजकुमारी की शादी तुम से करके उसे दण्डित करना चाहते हें।’ सेवक ने बुझे स्वर में कहा।

‘बड़ी अजीब बात है जो तुम्हारा अपनी लाडली पुत्री को एक भिक्षुक के गले बांधना चाहता है। राजमहल से निकलकर आजीवन झोंपड़ी में रहने की सजा सुना रहा है उसे।’ भिक्षुक ने आश्चर्य से कहा।

‘हमारे राजा का फेसला अटल है और पुत्री भी उनकी है। वह उसकी है। वह उसकी शादी चाहे किसी राजकुमार से करें या किसी भिक्षुक से।।। तुम्हें क्या? में तो राजा का सेवक हूं और उनका आदेश है की तुम उनकी पुत्री कामिनी के साथ विवाह करो।’ सेवक ने कहा।

‘और अगर में यह न करूं तो…।’

‘हमारे राजा के आदेश का उल्लंघन का अर्थ है-मृत्युदण्ड।’ सेवक के स्वर में क्रोध उभर आया।

यह सुनकर भिक्षुक बने राजकुमार ने सोचा कि शायद वेराग्य उसके भाग्य में है ही नहीं। उसे गृहस्थ जीवन ही बिताना होगा अन्यथा इस  नगर का राजा उसे मृत्युदण्ड डे देगा। बुझे मन से वह राजा के सेवक के साथ राजमहल की और चल दिया। रास्ते में सेवक ने उसे अच्छी तरह से समझा दिया था कि वह राजा की हर बात को मान ले। अगर उसने ऐसा नही किया तो उसकी मौत निश्चित है। कुछ हीओ क्षण बाद भिक्षुक बना राजकुमार राजा के सामने खड़ा था। उसने राजा का आदेश मानकर उसकी पुत्री कामिनी के साथ विवाह कर लिया और उसे अपनी झोपंडी में ले आया। राजकुमारी ने भिक्षुक को अपना कर्मफल मानते हुए अपना पति स्वीकार कर लिया।

विवाह के कुछ दिन पश्चात राजकुमारी ने अपने पति के साथ किसी अन्य नगर में जाकर रहने और वहां पति को किसी धंधे में लगाने का निश्चय कर लिया। उसने पति से कहा-‘स्वामी! भीख मांगकर जीवन निर्वाह करना अशोभनीय कार्य है, इसलिए में चाहती हूं कि इस नगर को छोड़कर हम कहीं और चलें ताकि आप वहां कोई काम-धंधा कर लें और हम सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें।’

‘तुम धन्य हो प्रिये! जिसने अपने भाग्य को भगवान मानकर मुझ जेसे भिक्षुक की पत्नी बनना स्वीकार कर लिया। इसलिए मेरा भी यह कर्तव्य है कि एक पति होने के नाते तुम्हारी हर इच्छा को स्वीकार करूं।’ भिक्षुक ने कहा।

अगले दिन प्रातःकाल कामिनी अपने पति पति के साथ किसी अन्य नगर की और चल दी। यात्रा करते-करते दोपहर को गई और वह दोनों थककर एक नदी के तट पर स्तिथ बड़े से वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम करने लगे। कुछ देर विश्राम करने के बाद कामिनी उठकर खड़ी हो गई और पति से कहा-‘आप यहीं विश्राम करें, में कुछ भोजन-पानी का प्रबंध करके लाती हूं।’

‘ठीक है जाओ! लेकिन सावधानी से जाना।’ भिक्षुक ने कहा।

कगी देर तक यात्रा करते रहने के कारण राजकुमार थक गया था,

इसलिए वह लेट गया और कुछ ही देर में उसे नींद आ गई।

जब कामिनी लोटकर आई तो उसकी आंखे आश्चर्य की अधिकता से फटती चली गई। भिक्षुक सो रहा था और उसके मुंह कट भीतर से सर्प हवा खाने के लिए अपना मुंह बाहर निकक्ले हुए था। समीप ही रेत का टीला था, समीप ही रेत का टीला था, उसके पास ही बिल बनाकर रहनेवाला सर्प भी हवा खाने बाहर निकला हुआ था। बिल से बाहर निकले सर्प ने भिक्षुक बने राजकुमार के मुंह से झांकते सर्प से कहा-‘ तुमने एक मानव के पेट मे घुसकर उसका जीवन नर्क जेसा क्यों बना रखा है?

‘तुम ने राजकोष को क्यों गन्दा कर रखा है?’ पेटवाले सांप ने क्रोधित होकर बिल वाले सांप से कहा।

‘शायद किसी को यह बात मालूम नहिं है कि पुरानी कांजी और काली सरसों को पीसकर गरम जल के साथ पी लाने से तुम्हारी मृत्यु हो सकती है।’ बिलवाले सांप ने अत्यधिक क्रोध में कहा।

‘और किसी को यह भी मालूम नहिं कि गरम और खोलते तेल को तुम्हारे बिल में डालने से तुम भी मर सकते हो।’ पेटवाला सांप अपना नियंत्रण खो चूका था और क्रोधवश फुंफकारने लगा।

दोनों सर्पो का वार्तालाप सुनने के बाद राजकुमारी उन दोनों की मृत्यु का गुप्त रहस्य जन गयी। राजकुमारी ने उन्हीं के बताय उपायों से दोनों सर्पो को मार डाला। इससे उसका पति स्वस्थ हो गया और दूसरी ओर उसे राजकोष भी प्राप्त हो गया।

कथा-सार

एक-दुसरे के गुप्त रहस्यों को उजाकर करने से दोनों ही पक्षों को हनी होती है। भाग्य को ही भगवान समझनेवाला अपने भाग्य के फल को बड़ी सहजता से प्राप्त कर लेता है। जेसे बातों-ही-बातों में दोनों सर्प तेश में। आ गए और अपनी मृत्यु का रहस्य खोल बेठे। वे भूल गया थे कि दीवारों के भी कान होते हें।

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