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लुई पास्चर
जन्म: 1822 | मृत्यु: 1895
लुई पास्चर की गणना संसार के महान रसायनज्ञो में की जाती हें। उन्होंने चिकित्सा तथा रसायन के क्षेत्र में मानव जगत की अमूल्य सेवा की हैं। पास्चर ने बहुत सी बीमारियों का इलाज ढूंढ निकला था। मुर्गियों की चेचक, रेशम के कीड़ो की बीमारी एंव पागल कुत्ते के काटे का इलाज ढूंढ कर उन्होंने चिकित्सा सम्बन्धी अनेक समस्याओं का समाधान कर दिया था।
एक वैज्ञानिक के रूप में प्रतिष्ठित होने के पहले वे फ़्रांस की क्रांति में भी अपना योगदान दे चुके थे। यह उन्ही की खोज थी कि दूध आदि में उपस्थित जीवाणु ही उसे खट्टा या ख़राब कर देते है। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि उचित मात्रा में गर्मी पहुचा कर इन जीवाणुओं को नष्ट किया जा सकता है। इस प्रकार दूध, मक्खन आदि वस्तुओं को अधिक समय तक बिना ख़राब हुए रखा जा सकता है। उनकी इस विशिष्ट विधि से तपेदिक (TB) आदि रोगों को उत्त्पन्न करने वाले कीटाणु भी नष्ट हो सकते है। इस प्रकार जीवाणुओं की उत्त्पति रोकने एवं उन्हें नष्ट करने की विधि का पता लगाकर लुई पास्चर ने रोगों की चिकित्सा के अतिरिक्त खाद्य पदार्थो को सुरक्षित रखने में भी सहायता दी। दूध के निरोगीकरण के पास्चराइज करना कहते और इस विधि को सरे संसार में अपनाया गया है। उन्होंने अनेक बीमारियों के इलाज खोजे। पागल कुत्ते के काटने से उत्त्पन्न बीमारी का टिका खोजकर उन्होंने मानवता की अमूल्य सेवा की।
लुई पास्चर का जन्म फ़्रांस के डोल ज़ुरा में हुआ था। बचपन में ही लुई में देशभक्ति के गुण समाहित थे। शर्मीले स्वभाव के लुई को प्रकृति, चित्रकला एवं विज्ञानं में विशेष आनंद आता था। वे फ्रेंच एकेडमी के सदस्य भी रहे। फ्रांस में उन्हें एक देवता के रूप में माना जाता है, जिसने मनुष्य के दुःख-दर्द को दूर करने में मदद दी। 73 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।