स्वामी विवेकानंद
जन्म: 1863 | मृत्यु: 1902
एक युवा सन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशो में बिखेरने वाले विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान थे। श्रीरामकृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर वे आस्तिकता की ओर उन्मुख हुए थे और 1890 से उन्होंने सारे भारत में घूम-घूम कर ज्ञान की ज्योति जलानी शुरू कर दी। 31 मई, 1893 को वे शिकागो (अमेरिका) में ‘सर्वधर्म सम्मेलन’ में भा लेने के लिए गए। 11 सितम्बर को उन्होंने वहां अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया जिसके समक्ष विश्व के मनीषियों का सिर श्रद्धा से झुक गया। 1895 में वे इंग्लैंड रवाना हुये और वहां भी भारतीय धर्म और दर्शन का प्रसार किया। 1897 में भारतीयों की सेवा के लिए उन्होंने भारत में ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की तथा अमेरिका में उन्होंने वेदांत सोसाइटी एवं शांति आश्रम की स्थापना की। विवेकानंद ने सदैव भारतीयों को अपनी संस्कृति और राष्ट्रीयता का सम्मान करने की प्रेरणा दी।
स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ था। उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता से (1879 में) एंट्रेंस की परीक्षा पास की। अपने शिक्षाकाल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे किन्तु हर्बर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। श्रीरामकृष्ण परमहंस से मिलकर वे महान आस्तिक ‘विवेकानंद’ में बदल गये। परमहंस जी के अवसान के बाद उन्होंने भारतीय अध्यात्म एंवम मानव प्रेम के प्रचार का दायित्व अपने कंधो पर उठा लिया। इस महाओजस्वी और युवा व्यक्तित्व का 8 जुलाई, 1902 को अल्पायु में ही महाप्रयाण हो गया।
‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथो की रचना करके स्वामी विवेकानंद ने युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव जनमानसपर युगों-युगों तक छाया रहेगा। कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी उनकी महानता की कहानी कह रहा है।