रामदीन धोबी के पास एक गधा था. वह दिनभर उस गधे से जी-तोड़ काम लेता और शाम को उसे खुला छोड़ देता ताकि वह जंगल तथा खेतों में हरी घास चरकर अपना पेट भर सके. गधा बहुत सीधा जानवर होता है, मालिक कुछ खाने को दे या न दे-अपना काम करता रहता है. उस गधे को अगर किसी बात का मलाल था तो बस यह कि उसका कोई संगी-साथी नहीं था, जिससे वह अपने मन ही कह पाता.
एक दिन ऐसा हुआ की गीदड़ राह भटककर उन खेतों की ओर आ निकला, जहां खड़ा गधा घास चार रहा था गधे को देखते ही गीदड़ प्रसन्न हो उठा क्योंकि वह भी अकेला जीवन गुजरता तंग आ गया था और मित्र की तलाश में था. दोनों का उद्देश्य एक ही था-मित्र ढूढ़ना, सो शीघ्र ही वे एक-दुसरे के मित्र बन गए.
फिर क्या था. दोनों रोज मिलने लगे. एक दिन गीदड़ ने गधे से पूछा, ‘मित्र! तुम यह हर समय घास क्यों खाते रहते हो?’
‘पेट की आग भी तो बुझानी है.’ गधे ने उत्तर दिया.गीदड़ बोला, ‘रोज घास खाते-खाते तुम्हारे मुंह का स्वाद बिगड़ गया होगा. आज मैं तुम्हें उतम भोजन कराऊंगा. वह देखो! सामने खेत में स्वादिष्ट खरबूजे लगे है. आओ, दोनों चलकर खाते है.’
खरबूजे का नाम सुनते ही गधे के मुंह में पानी भर आया. उसे खरबूजा खाए महीनों बिट चुके थे. खेत में जाकर गीदड़ और गधा दोनों खरबूजे खाते हुए बतियाने लगे.
खरबूजे खाकर गधा अपनी तरंग में आ गया और ‘ ढेंचू- ढेंचू’ का राग अलापने लगा. गीदड़ ने जब यह देखा तो बोला, ‘मित्र१ यह क्या कर रहे हो? खेत का मालिक आ गया तो अनर्थ हो जाएगा, अतः शोर न मचाओ.’
‘मित्र! मैं शोर नहीं कर रहा, मैं तो राग अलाप रहा हूं. तुम जंगल में रहनेवाले जानवर क्या जानो, संगीत क्या होता है. कोई भी प्राणी जब खा-पीकर तृप्त हो जाता है तो वह खुशी से नाचने-गाने लगता है. मेरा तो मन हो था है कि इसी तरह देर तक गाता रहूँ.’
गडद ने गधे को फिर समझाया और चुप रहने को कहा लेकिन गधा अपना बेसुरा राग अलापता ही रहा.
गीदड़ ने फिर कहा, ;मित्र मैं अंतिम बार कह रहा हूं-चुप हो जाओ.’
‘तुम बहुत डरपोक हो मित्र!’ गधा बोला.
‘तुम चाहे जो कहो लेकिन मैं मौका देखकर ही बात करता हूं.’ गीदड़ ने जवाब दिया.
गधे ने कहना नहीं मानना था सो नहीं माना. आखिरकार हथियार डालते हुए गीदड़ बोला, ‘तुम्हारे जो मन आए, करो. मैं अपनी जान जोकिम में नहीं डाल सकता. मैं दूर खड़ा तुम्हारी बेसुरी तान सुनता रहूंगा.’
गधा अपनी धुन में मगन रेंकता रहा. गधे का बेसुरा राग सुनकर खेत के मालिक की नींद टूट गई और वह डंडा लेकर खेत की और दौड़ा. वहां पहुंचकर उसने अपने खेत की दुर्दशा देखी तो उसे क्रोध आ गया. ऊपर से गधे की बेसुरी तान ने उसकी क्रोधाग्नि में घी डालने का काम किया. उसने आव देखा न ताव-दनादन गधे पर लटठ बजाना शुरू कर दिया. गधा अपना राग भूलकर जान बचाता हुआ भाग निकला लुकिं तब तक वह बुरी तरह लहुलुहान हो चूका था.
कथा-सार
असमय कोई भी काम नहीं करना चाहिए. किसी भी काम को करने से पहले आगा-पीछा जरुर सोच लेना चाहिए वरना गधे जैसा हश्र होने में देर नहीं लगेगी. गधा मुर्ख था, जो अपने मित्र की बात नहीं मानी. इसीलिए प्रायः मूर्खो को गधे की संज्ञा दी जाती है.